कुछ मित्रों ने मुझे फिर से सुझाव भेजे कि आप हिन्दी सेंटर चलाते हैं तो सिर्फ हिन्दी में क्यों नहीं लिखते ? आप हिन्दी के आलवा अंग्रेजी और अन्य भाषा में भी क्यों लिखते हो ? इस बात पर मैं अपने विचार प्रकट करना चाहता हूँ।
मेरे द्वारा संचालित हिन्दी सेंटर का मकसद कोई आंदोलन की शुरुआत करना नहीं है और न ही लोगों को जबर्दस्ती समझाना हैकि आप अगर हिन्दी में बोलेंगे तभी राष्ट्रवादी कहलायेंगे। इसका मकसद बहुत ही सरल है।इसका मकसद हिन्दी और भारतीय भाषा और संस्कृति पर शोध को बढ़ावा देना है औरहिन्दी को विदेशी और अहिंदी भाषी लोगों तक पहुंचाना है और अगर इसके लिए अङ्ग्रेज़ी (जिसे हम चाहे माने या न माने) और अन्य भाषाओंका प्रयोग जरूरी है। याद रहे कोई अमेरीकन या कोई फ्रांसीसी आपसे हिन्दी में बात तभी करेगा जब आप उससे उसकी भाषा में बात करेंगे। सिर्फ हिन्दी में बात करके न हम हिन्दी की सीमा को छोटा कर रहे हैं बल्कि पूरी दुनिया में अपने आप को कुएं का मेढक घोषित कर रहे हैं और इससे दूसरे भाषा के साथ संवाद नहीं होता और हिन्दी सिर्फ हिन्दी भाषियों के बीच सीमित रह जाता है, और ऐसा करना कोई गौरव की बात नहीं।
मुझे इस बात का भी एहसास है कि हिन्दी के लिए हिन्दी माध्यम से लड़ाई कने वालों की संख्या कुछ ज्यादा है, लेकिन हिन्दी के लिए अङ्ग्रेज़ी या अन्य भाषा के माध्यम से उसे बढ़ाने वालों की संख्या न के बराबर है। तभी तो आज गिने चुने अङ्ग्रेज़ी बोलने वाले पूरे भारत पर अभी भी राज कर रहे हैं और हमारा हिन्दी भाषी और अन्य 1600 से ज्यादा भाषा बोलने वाला भारतवर्षमूक देखता रहा है।
अगर आप हिन्दी के लिए सचमुच में निष्ठावान हैं तो उन सरकारी महकमे को समझाएँ जो आज भी अंग्रेजीयत के शिकार हैं और जो न सिर्फ जनता के पैसे से जीते हैं बल्कि अङ्ग्रेज़ी में पूरा का पूरा कानून बना डालते हैं। इतना ही नहीं आजादी के 68 साल के बाद भी उसी कानून को अङ्ग्रेज़ी में लागू भी करते हैं और जमीन से जुड़े उन हर इंसान को हेय दृष्टि से देखते हैं जो अपनी भाषा और मिट्टी से जुड़ा है।
मुझे बहुत ही पीड़ा महसूस होती है जब कोई हिन्दी को आगे बढ़ाने की बात करे (चाहे जैसे भी हो) तो उसे कोई न कोई कारण से हतोत्साहित कर दिया जाता है खास के उन हिन्दी प्रेमियों के द्वारा जो काम कम करते हैं और आलोचना ज्यादा। मैं अङ्ग्रेज़ी में लिखूँ तो फर्क पड़ता है और पूरा भारतीय प्रशासन जब अङ्ग्रेज़ी में नियम और कानून बना डाले और उसे करोड़ों जनता पर थोप दे और उन्ही के पैसे से, तब कोई कुछ नहीं बोलता। माफ कीजिएगा ऐसे हिन्दी प्रेमियों के साथ मेरा मेल नहीं खाता।
हर कोई का अपना अपना नजरिया है। अगर आप अपनी बात सिर्फ हिन्दी में करना चाहते हैं तो जरूर करें वह आपका मूल अधिकार है। मुझे भी अपनी बात रखने का उतना ही अधिकार है जितना आपको मुझे मेरे मौलिक अधिकार से क्यों वंचित रखना चाहते हो ?