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एक लकड़हारे युवक की कहानी है। लकड़हारा काफी मेहनती था। वह दिन में अवकाश के समय भी काम करता रहता और उन बुज़ुर्ग लोगों से उसे शिकायत रहती कि वे दिन में कई बार कुछ न कुछ पीने और गप्प हांकने के लिए बेवजह काम रोक कर समय नष्ट करते हैं। जैसे जैसे समय बीतता गया, उस युवा ने गौर किया कि हालांकि वह निरंतर बिना रुके अवकाश के समय भी काम करता है और शायद ही कभी आराम करता हो, इसके बाबजूद बाकी के बुजुर्ग लोग उतने ही पेड़ काट रहे थे बल्कि कई बार तो उससे भी ज्यादा काट डालते थे। ऐसा लगता था कि वे बुजुर्ग उसी की भाँति अवकाश के समय भी काम करते रहे हों इसलिए उसने तय किया कि अगले दिन से अब वह और ज्यादा मेहनत से काम करेगा। दुर्भाग्य से इसका नतीजा और भी खराब निकला।

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बहुत ही दुखद स्थिति है कि विश्व पटल पर हिन्दी बोलने वालों की संख्या दूसरे या तीसरे स्थान पर हैं, लेकिन हिन्दी या कोई और भारतीय भाषा का ऑनलाइन प्रयोग करने वालों की संख्या बहुत ही कम है। क्या हम कभी इस डिजिटल विभाजन को दूर कर पाएंगे ?

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