बहुत ही दुखद स्थिति है कि विश्व पटल पर हिन्दी बोलने वालों की संख्या दूसरे या तीसरे स्थान पर हैं, लेकिन हिन्दी या कोई और भारतीय भाषा का ऑनलाइन प्रयोग करने वालों की संख्या बहुत ही कम है। क्या हम कभी इस डिजिटल विभाजन को दूर कर पाएंगे ?
भारत में इंटरनेट का उपयोग करने वालों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। गूगल इंडिया के विपणन निदेशक संदीप मेनन का कहना है, “2011 में 10 करोड़ उपयोगकर्ताओं से, हम अब 30 करोड़ उपयोगकर्ताओं के साथ दुनिया के दूसरे सबसे बड़े इंटरनेट के उपयोगकर्ता हैं और 2017 तक हम 50 करोड़ छूने के लिए पूरी तरह से तयार हैं"।
भारत की सत्तर प्रतिशत से अधिक आबादी हिन्दी में अपने को अभिव्यक्त करती है। एक अनुमान के अनुसार 500 मिलियन हिन्दी के वक्ता होने के बावजूद, विकिपीडिया पे सिर्फ 104,325 लेख हिन्दी में हैं। दूसरी ओर, देखा जाए तो ये काफी संतोषजनक बात है कि आज ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, गुयाना, मारीशस, सूरीनाम, फीजी, नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, त्रिनिदाद और टोबैको जैसे देशों में हिंदी बोलने वाले काफी तादाद में रहते हैं जो हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए काफी है। आज इंटरनेट पर हिंदी भाषा बहुत तेज़ी से अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रही है। हिंदी की वेबसाइटों की संख्या जिस अनुपात में बढ़ रही है उसी अनुपात में इसके पाठकों की संख्या भी बढ़ रही है।
"वेब पर हिंदी सामग्री का उपयोग अब बढ़ रहा है। 19 प्रतिशत अंग्रेजी सामग्री की तुलना में यह साल-दर-साल 94 फीसदी की विकास दर से बढ़ा है। जब सन 2000 में हिंदी का पहला वेबपोर्टल अस्तित्त्व में आया तभी से इंटरनेट पर हिंदी ने अपनी छाप छोड़नी प्रारंभ कर दी जो अब रफ्तार पकड़ चुकी है। नई पीढ़ी के साथ-साथ पुरानी पीढ़ी ने भी इसकी उपयोगिता समझ ली है।
इन सभी बदलावों के साथ-साथ, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को नेट पर बहुत लंबा सफ़र तय करना है। इनके मार्ग में अनेक तकनीकी बाधाएँ हैं। हमारे एक प्रबुद्ध वर्ग का इस उच्च-भ्रू तकनीक (इंटरनेट) से अलगाव विचारधारात्मक उतना नहीं हैं, जितना कि इसके दाँव-पेंचों को न समझ पाने (जैसे आर्थिक या फिर तकनीकी जटिलताओं से अनुकूलन न कर पाना) के कारण है। अत: वे इससे एक दूरी बरतना ही पसंद करते हैं। इस दूरी को कम करना अत्यंत आवश्यक है। ऐसा करने से ही हम सबसे निचले तबके तक वैश्वीकरण के सभी लाभ पहुंचा पाएंगे।