हिंदी और उसका प्रसार: प्रशासनिक और सामाजिक संदर्भ में हिंदी | रवि कुमार के साथ डॉ एम एल गुप्ता
भारत की 50% से ज्यादा जनता हिंदी बोलती है लेकिन आज तक हिंदी को भारतीय प्रशासनिक और सामाजिक परिपेक्ष्य में उसका सही अधिकार नहीं मिला. इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे अंग्रेजी के प्रति रुझान, अपनी मातृभाषा के प्रति कुंठा, पावर सर्किल में अंग्रेजी के प्रति जरूरत से ज्यादा प्रेम. इसके अलावा कुछ पॉलिसी जो भारतीय परिपेक्ष में अंग्रेजों के द्वारा लायी गयी और उनके जाने के बावजूद भी उसे हटाने के बजाय उसे व्यवस्थित तरीके से मजबूत किया गया. हिंदी को एक राजभाषा बना दिया गया लेकिन अंग्रेजी भाषा को अंग्रेजी प्रथा का ध्यान रखते हुए बिना किसी कानून के पूरे भारत पर राष्ट्रभाषा के तौर पर थोप दिया गया और अंग्रेजों के जाने के बाद अंग्रेजियत से ग्रसित शासकों ने हिंदी के प्रति उदासीनता दिखाई. प्रशासनिक अधिकारियों ने हिंदी भाषा का प्रयोग कम किया और अंग्रेजी पर ज्यादा ध्यान दिया जिसके कारण धीरे धीरे हिंदी सिर्फ बोलचाल की भाषा के तौर पर हम घर में प्रयोग करते हैं लेकिन शिक्षा, रोजगार या अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा अन्य कार्यक्रम में प्रशासनिक अधिकारी अंग्रेजी का प्रयोग करते नजर आते हैं . ऐसे में हिंदी पिछड़ती हुई नजर आ रही है. आज के इस श्रृंखला में हमारी टीम ने डॉक्टर मोतीलाल गुप्ता जी के साथ बातचीत की जो राजभाषा विभाग में पहले डिप्टी डाइरेक्टर के तौर पर कार्यरत थे और उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने बहुत सारे समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हिंदी को रोजगार के साथ जोड़ने की कोशिश की, हिंदी को कानूनी व्यवस्था के साथ जोड़ने की कोशिश की और प्रशासनिक भाषा के तौर पर उसे आगे बढ़ाने की कोशिश की. आज सेवानिवृत्त होने के बाद वो हिंदी को उसका सही जगह दिलाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं और उन्होंने एक फोरम भी बनाया है जिसमें करीब 15,000 हिन्दीसेवी जुड़े हुए हैं. इनका मानना है कि आम जनता के तरफ से जब हिंदी के लिए मांग बढ़ेगी, तो सरकार अपने आप उसके प्रति उदार बनेगा. डॉक्टर गुप्ता ने और भी कई महत्वपूर्ण बातों के तरफ हमारा ध्यान आकर्षित किया. मैं चाहूंगा कि आप इस वीडियो को अंत तक देखें और अपने विचार जरूर दें.