भाषा में उलझती प्रतिभाएं

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By Alok Sahay, Wg Cdr Alok Sahay (Retd)) 

आज हिंदी दिवस है.....

अपने जीवन का ये अंश ताजा हो गया....

मैंने बी ए ऑनर्स तक हिंदी माध्यम से पढ़ाई की, जेएनयू के एडमिशन टेस्ट में पहली बार अंग्रेजी के अलावा किसी और विषय को अंग्रेजी में लिखना पड़ा, पसीने छूट गए थे, किसी तरह एक एक लाइन को ट्रांसलेट करके लिखा (उन दिनों दिल्ली में shortlisted छात्र एडमिशन टेस्ट के लिए बुलाए जाते थे, वर्ष था 1981) । कैसे लिखित परीक्षा में चयनित हो गया पता नहीं, बाद में पता चला जो चयनित (shortlisted) छात्र दिल्ली बुलाए गए हैं उनका सब का लिखित और मौखिक दोनों होता है और दोनों के नंबर मिलाकर मेरिट लिस्ट के हिसाब से चयन होता है। फिर interview का सामना करना पड़ा। पता चला, अंग्रेजी में ही होगा। अंदर पहुंचा, पहले परिचय पूछा गया और कहा से आए हो , ये सब तो अंग्रेजी में बोल गया। जब विषय का पहला प्रश्न दागा गया तो मैंने तुरंत बोला, "Sir, May I speak in Hindi"..... एक साथ सभी इंटरव्यू लेने वालों कि निगाह आश्चर्य से मेरे ऊपर। मैं घबराया नहीं, तुरंत बोला,

"Sir, I am coming from a very small town in Bihar and I have studied in Hindi medium throughout." इसपर उनमें से एक बोले, "But you are speaking good English". मैंने बोला, Sir, I can speak this much only.... can't speak in my subject".

सभी परेशान.....फिर उनमें से एक बोले कि देखो तुम अंग्रेजी बोल तो ठीक रहे हो, शायद तुम्हारी झिझक है। मैंने कहा सर, अंग्रेजी एक अनिवार्य विषय के रूप में तो मैंने पढ़ा ही है, लेकिन कभी बोलचाल में नहीं इस्तेमाल किया और अपने सब्जेक्ट (इतिहास) की सारी किताबें हिंदी मीडियम में ही पढ़ी हैं। साथ में ये बता दूं कि उस समय साक्षात्कार लेने वालों में बैठे थे देश के नामी गिरामी इतिहासकार जो उस समय जेएनयू में शिक्षक थे, लेकिन चूंकि मैं उनको उस समय तक जानता नहीं था इसलिए मेरे कॉन्फिडेंस में कोई कमी नहीं आई। फिर एक प्रोफेसर ने कहा,

" You start answering in English and wherever you get stuck, complete it in Hindi".

बस शुरू हुआ इंटरव्यू, दनादन प्रश्न पूछे जाने लगे और मैं दनादन अंग्रेजी में एक दो लाइन बोलता और फिर हिंदी में चालू हो जाता। करीब 50 मिनट तक इंटरव्यू चला। आखिर में एक प्रश्न आया जिसे मैं नहीं जानता था, मैंने कॉन्फिडेंस के साथ बोला, "आई डोंट नो सर" । मैं बाहर आया। हिंदी माध्यम में पढ़े होने कि आत्मग्लानि और हीन भावना से ग्रसित होकर दो तीन दिन छुपकर खूब रोया। जेएनयू के कैंपस और वहां का माहौल देखकर ईश्वर से बोलता, भगवान मैंने क्या गलती थी कि मुझे ऐसे पिछड़े जगह में जन्म लेना पड़ा। कितने भाग्यशाली ये अन्य लड़के हैं। मैं अपने घर सीवान, बिहार वापस जाने के लिए तैयार हुआ (वहां का माहौल देखकर चयन कि कोई आशा दूर दूर तक नहीं थी)। लेकिन साथ के कुछ बिहारी छात्रों ने रोक लिया, "अरे इतना हतास क्यूं होते है, ठीक है रुको अभी, दिल्ली आए हो तो ये शहर ही देखो एक दो दिन, पता नहीं फिर आना हो न हो"..... "देख के जाएंगे की हमारी ग्रुप में किसी का होता है कि नहीं "(तब तक बिहार के ६-७ लड़को के साथ थोड़ी पहचान हो गई थी)। में रुक गया। रिजल्ट का दिन आया, और उसमे मेरा नाम ऊपर से चौथे नंबर पर लिखा था। सभी मेरे को पकड़ के चीख पड़े। मैंने कहा ये हो ही नहीं सकता, Alok Kumar एक इतना common नाम है कि हर लिस्ट में दो चार दिख जाते है। फिर हमने ऑफिस में जाकर पूछा, ये चौथे स्थान पर जो नाम है उसका पता जरा देखकर बताइए। उन्होंने जब मेरा पता बोला तो मैं काफी देर तक शून्य हो चला था, मुझे लड़के उठाकर बिल्डिंग से बाहर लाए।

फिर जेएनयू में चयन हो जाने के बाद, शुरू के दो तीन महीने सबकुछ अंग्रेजी में सुनना, बोलना और लिखना मेरे जीवन का सबसे बड़ा महाभारत था जो लगभग ३-४ महीने चला, लेकिन विजय प्राप्त हुई।

आज हिंदी दिवस पर सोचता हूं कि पता नहीं हजारों या लाखों प्रतिभाएं हमारे देश में हिंदी या छेत्रीय भाषाओं के माध्यम की पढ़ाई के कारण दब कर आगे नहीं आ पाती होंगी।

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