हिन्दी बनाम अंग्रेजी

मुझे इस बात का भी एहसास है कि हिन्दी के लिए हिन्दी माध्यम से लड़ाई कने वालों की संख्या कुछ ज्यादा है, लेकिन हिन्दी के लिए अङ्ग्रेज़ी या अन्य भाषा के माध्यम से उसे बढ़ाने वालों की संख्या न के बराबर है। तभी तो आज गिने चुने अङ्ग्रेज़ी बोलने वाले पूरे भारत पर अभी भी राज कर रहे हैं और हमारा हिन्दी भाषी और अन्य 1600 से ज्यादा भाषा बोलने वाला भारतवर्षमूक देखता रहा है।

अगर आप हिन्दी के लिए सचमुच में निष्ठावान हैं तो उन सरकारी महकमे को समझाएँ जो आज भी अंग्रेजीयत के शिकार हैं और जो न सिर्फ जनता के पैसे से जीते हैं बल्कि अङ्ग्रेज़ी में पूरा का पूरा कानून बना डालते हैं। इतना ही नहीं आजादी के 68 साल के बाद भी उसी कानून को अङ्ग्रेज़ी में लागू भी करते हैं और जमीन से जुड़े उन हर इंसान को हेय दृष्टि से देखते हैं जो अपनी भाषा और मिट्टी से जुड़ा है।

मुझे बहुत ही पीड़ा महसूस होती है जब कोई हिन्दी को आगे बढ़ाने की बात करे (चाहे जैसे भी हो) तो उसे कोई न कोई कारण से हतोत्साहित कर दिया जाता है खास के उन हिन्दी प्रेमियों के द्वारा जो काम कम करते हैं और आलोचना ज्यादा। मैं अङ्ग्रेज़ी में लिखूँ तो फर्क पड़ता है और पूरा भारतीय प्रशासन जब अङ्ग्रेज़ी में नियम और कानून बना डाले और उसे करोड़ों जनता पर थोप दे और उन्ही के पैसे से, तब कोई कुछ नहीं बोलता। माफ कीजिएगा ऐसे हिन्दी प्रेमियों के साथ मेरा मेल नहीं खाता।

हर कोई का अपना अपना नजरिया है। अगर आप अपनी बात सिर्फ हिन्दी में करना चाहते हैं तो जरूर करें वह आपका मूल अधिकार है। मुझे भी अपनी बात रखने का उतना ही अधिकार है जितना आपको मुझे मेरे मौलिक अधिकार से क्यों वंचित रखना चाहते हो ?

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